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उ॒शना॑ का॒व्यस्त्वा॒ नि होता॑रमसादयत् । आ॒य॒जिं त्वा॒ मन॑वे जा॒तवे॑दसम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uśanā kāvyas tvā ni hotāram asādayat | āyajiṁ tvā manave jātavedasam ||

पद पाठ

उ॒शना॑ । का॒व्यः । त्वा॒ । नि । होता॑रम् । अ॒सा॒द॒य॒त् । आ॒ऽय॒जिम् । त्वा॒ । मन॑वे । जा॒तऽवे॑दसम् ॥ ८.२३.१७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:17 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:17


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शिव शंकर शर्मा

सब उसी की स्तुति करते हैं, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे ईश ! (उशना) अभिलाषी (काव्यः) कविपुत्रगण (मनवे) मनन के लिये (त्वा) तुझको ही (नि+असादयत्) प्राप्त करते हैं, जो तू (होतारम्) सम्पूर्ण विश्व में अनन्त पदार्थों की आहुति दे रहा है और इस प्रकार (आयजिम्) वास्तविक यज्ञ भी तू ही कर रहा है और (जातवेदसम्) तेरे द्वारा ही जगत् की सम्पत्तियाँ उत्पन्न हुई हैं ॥१७॥
भावार्थभाषाः - वास्तव में वह ईश ही होता है। वही सर्वधनेश और याजक है ॥१७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उशना, काव्यः) आपकी इच्छा करनेवाला विद्वान् का पुत्र (निहोतारम्) सम्यक् यज्ञसम्पादक (त्वा) आपको (असादयत्) यज्ञ में उपस्थित करता है (आयजिम्) सम्यग् यजन करानेवाले (जातवेदसम्) प्राणिजात को जाननेवाले (त्वा) आपको ही (मनवे) मनु=ज्ञानी होने के लिये शरण बनाता है ॥१७॥
भावार्थभाषाः - भाव यह है कि जिस देश में उत्क्रान्तिवर्द्धक कवि उत्पन्न होते हैं, उस देश को परमात्मा, जो प्रत्येक प्राणीवर्ग में व्याप्त है, वह अपनी ज्ञानदीप्ति से उनको देदीप्यमान करता है ॥१७॥
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शिव शंकर शर्मा

सर्वे तमेव स्तुवन्तीति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे ईश ! उशनाः=इच्छुकः। काव्यः=कविपुत्रो जनः। मनवे=मननाय। त्वामेव। नि+असादयत्=प्राप्नोति। कीदृशम्। होतारम्। आयजिम्=आयाजकम्। जातवेदसम्= सर्वज्ञानमयम्=जातसर्वसम्पत्तिकञ्च ॥१७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उशना, काव्यः) कामयमानः कविपुत्रः (निहोतारम्) नितरां यज्ञसम्पादकम् (त्वा, असादयत्) त्वामेव यज्ञप्रारम्भे स्थापयति (आयजिम्) सम्यग्यष्टारम् (जातवेदसम्) जातं जातं वेत्सि तम् (त्वा) त्वाम् (मनवे) मनुः स्यामित्यभिलाषाय स्थापयति ॥१७॥